उम्र को जी भर के जी लो

*उम्र*                                                                            *Beautiful peom, pl enjoy.* 


*मैं उम्र बताना नहीं चाहता हूँ,*


*जब भी यह सवाल कोई पूछता है,*
*मैं सोच में पड़ जाता हूँ,*


*बात यह नहीं, कि मैं,*
*उम्र बताना नहीं चाहता हूँ,*
*बात तो यह है, की,*
*मैं हर उम्र के पड़ाव को,*
*फिर से जीना चाहता हूँ,*
*इसलिए जबाब नहीं दे पाता हूँ,*


*मेरे हिसाब से तो उम्र,*
*बस एक संख्या ही है,*


*जब मैं बच्चो के साथ बैठ,*
*कार्टून फिल्म देखता हूँ,*
*उन्ही की, हम उम्र हो जाता हूँ,*
*उन्ही की तरह खुश होता हूँ,*
*मैं भी तब सात-आठ साल का होता हूँ,*


*और जब गाने की धुन में पैर थिरकाता हूँ,*
*तब मैं किशोर बन जाता हूँ,*


*जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनता हूँ,*
*उनकी ही तरह, सोचने लगता हूँ,*


*दरअसल मैं एकसाथ,*
*हर उम्र को जीना चाहता हूँ*


*इसमें गलत ही क्या है?*
*क्या कभी किसी ने,*
*सूरज की रौशनी, या,*
*चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?*


*या फिर खल खल करती,*
*बहती नदी की धारा से उम्र*फिर* *मुझसे ही क्यों?*


*बदलते रहना प्रकृति का नियम है,*
*मैं भी अपने आप को,*
*समय के साथ बदल रहा हूँ,*


*आज के हिसाब से,*
*ढलने की कोशिश कर रहा हूँ,*


*कितने साल का हो गया मैं,*
*यह सोच कर क्या करना?*


*कितनी उम्र और बची है,*
*उसको जी भर जीना चाहता हूँ,*


*एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,*
*वह पल, किसी के भी जीवन में,*
*कभी भी आ सकता है*,


*फिर क्यों न हम,*
*हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,*
*हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*


संग्रह डॉ मनोहर लाल कक्कड़