कोरोना काल और हताश व्यापारी..... 

कोरोना काल और हताश व्यापारी..... 


मौजूदा परिस्थितियों मे पूरे भारत मे कॅरोना के बाद सबसे ज्यादा भयभीत अगर कोई है तो वह है व्यपारीक वर्ग क्योंकि बचपन से ही उनकी दिमागी सरंचना लाभ कमाने के लिए, जोखिम उठाने के लिए,आगे बढ़ने के लिये बनी है और माँ बाप से भी उनको विरासत मे यही गुण मिले है.


व्यपारियो मे भविष्य मे झाकने की प्रवर्ति बहुत होती है किस चीज की डिमांड ज्यादा होगी,आगे का सीजन कैसा होगा,आगे तेज़ी आयगी या मंदा आएगा अपने इस विलक्षण गुण के कारण उन्होंने ये जान लिया है आगे के व्यपारिक दिन अच्छे नही होंगे इस कारण निराशा, हताश,भय, कुंठा, अनिद्रा से घिरते जा रहे है क्योंकि अभी लॉक डाउन चल रहा है व्यपारी परिवार के साथ है काफी हद तक स्थिति सामान्य है लेकिन जब लॉक डाऊन खुल जायेगा तो बाद कि स्थितिया वास्तव मे खाफी खराब होंगी वसूली,भुगतान संकट ,स्टॉक ,सैलरी, सेल्स काफी चुनोतियाँ तैयार खड़ी है वे ऐसा ही होगा मानो युद्ध मे किसी सैनिक से उनकी राइफल छिन कर उनके हाथ मे लड़ने के लिए डंडा दे दिया जाये। चुंकि वयापर का चक्र टूट गया है तो आप कितने भी सकारात्मक हो जाओ सच्चाई को छुपा नही सकते क्योंकि व्यपारी की गाड़ी मे आगे के गियर होते है उसे गाड़ी को रिवर्स करना नही आता जो कि ऐसे मे उसकी मनोदशा को और भी परेशान करेगा नई पीढ़ी के युवा व्यपारीयो के लिए ऐसा माहौल एक नया तजुर्बा होगा क्योंकि उन्होंने व्यपार के ऐसे व्यहवार की कभी कल्पना भी नही करी होगी इस कारण हो सकता उन्हें काफी मानसिक बीमारियों का भी सामना करना पड़े इस मुसीबत की वजह हमारा सामाजिक ताना बाना है क्योंकि समाज व्यपारियो की सफलता का आंकलन एक ही आधार पर करता है पहले एक दुकान फिर दूसरी दुकान फिर कोठी फिर एक फैक्टरी फिर दूसरी फैक्टरी मैने आज तक किसी व्यवसायिक पुत्र का रिश्ता इस आधार पर होता नही देखा कि लड़का वयायाम करता है,योगा करता है,मंदिर जाता है और पूरी तरह स्वस्थ रहता है 
खैर मैं अपने मूल विषय पर आता हूँ व्यपारिक चुनोतियाँ वास्तव मे बहुत अधिक है बहुत ज्यादा मेहनत करने से , बहुत ज्यादा टूर लगाने से और बहुत ज़्यादा जोखिम उठाने से समस्या दूर नही होगी जब तक व्यपारिक चैन दुबारा नही जुड़ेगी कितने ही हाथ पैर मार लो कुछ नही होगा उद्योग जगत मे इस कदर नकारात्मकता हावी हो गई है मेरे कुछ बड़े उद्योगपति जानकार कहते है कि हम काम ही नही करना चाहते वो कहते है अगर हम अपने उद्योग धंधे बेच दे उससे होने वाली ब्याज की आय कारखानों को चलाने के वनिहस्पत कँही बेहतर होगी आज कल की इन्ह परिस्थितियों मे उनका ये आसान तरीका सही है किसी भी उद्योग को चलाना लौहे के चने चबाने जैसा होगा लेकिन नही मैं उनकी इस आसान रहा वाले फैसले से सहमत नही हूँ क्योंकि जब व्यपार की कड़ी जुड़ जायगी तो इस आसान मार्ग को चुनने वाले व्यपारीयो के पास अपनी अगली पीढ़ी को देने के लिए कोई व्यपार नही होगा तो जब प्रश्न उठता है कि समस्या का हल क्या है तो हल यह कि हमे अतीत मे होने वाले लाभः, अतीत मे होने वाले टर्नओवर, अतीत मे होनी वाली सेल्स को भूलना होगा यानी हमे अपने व्यपारिक टारगेट को दुबारा सुनिश्चित करना होगा शुरू मे टारगेट इतने छोटे हो जिसे प्राप्त करके हमे प्रसन्न हो सके जैसे एक छोटे दुकानदार के सामने बिजली का बिल और अपने कर्मचारियों की तनख्वाह निकलना ही उसका प्रथम टारगेट होना चाहिए और धीरे धीरे हर महीने अपने टारगेट को बहुत थोड़ा बढ़ाना है ताकि हम निराश से दूर होकर आशावान हो जाये समय का चक्र बदलेगा और परिस्थितिया आशावान होगी इस आशा के साथ आपका
लेख....  संजय वधावन
गली न:17, हाउस न:180
गांधी कॉलोनी
मुज़फ्फरनगर
9410622986