रेडियो एसडी 90.8 एफएम के हुए स्वर्णम 5 वर्ष पूर्ण
जब से चालू हूं मेरी मंजिल पर नजर है....
अतीत की किरणों से रोशन होता भारतवर्ष का एकलौता गोल्डन माइक अवार्ड विजेता रेडियो एसडी 90.8 एफएम अपने 5 वर्ष पूरे कर चुका है। जन-जन के मन को छोटा हुआ अपने कदमों को एक नए साल में बढ़ा रहा है। यादों के झरोखे में झांकी तो रेडियो एसडी ने पिछले 5 साल में शहर वासियों के दिल को छुआ है। नित नई जानकारी देने के साथ भरपूर मनोरंजन किया। साथ ही साथ समुदायिकता की भावना को सर्वोपरि रखकर सब के सपनों को सिंचित किया। 2015 में जब चेयरमैन नीरज कुमार और ध्रुव कुमार ने मिलकर यह सपना देखा तो तमाम चुनौतियां सामने खड़ी थीं। तमाम दिक्कतें आई... चुनौतियों की सीमा भी बढ़ती रही, लेकिन उम्मीद और हौसले ने कदमों को रुकने नहीं दिया।
रेडियो एसडी 90.8 एफएम ने न सिर्फ शानदार आगाज किया, बल्कि अपने श्रोताओं के दिलों पर राज करना शुरू किया। यूं तो रेडियो एक डिवाइस है। फ्रीक्वेंसी है। लेकिन, इसके पीछे खनकती आरजे की आवाज शहर के लोगों को गुदगुदाती तो अगले ही पल गीतों की माला को प्रस्तुत कर देती है। भोर होती है तो भक्ति सागर के सुमधुर भजनों की धारा बहती है। उसके बाद मॉर्निंग धूप में आर जे आकाश तो दिल को जोश और उत्साह से भर देते हैं। फिर आती है बारी ओह लेडीस की जहां होती है महिलाओं की रुचि से जुड़े मुद्दों पर बात आरजे शानू के साथ। दिन की अच्छी शुरुआत के बाद कुछ बातें होती हैं ज्ञान की और कैरियर को बनाने की कैंपस वॉच में आरजे कबीर के साथ। शाम का वक्त यानी फिर से तरोताजा करने के लिए साथ होती हैं आरजे अमरप्रीत पंजाबी तड़का में। आरजे नंदिनी पेश करती हैं फिल्मी नशा। आरजे शिखा खुलती है क़िस्सों और कहानियों की पोटली।
निर्देशक डाo सिद्धार्थ शर्मा कहते हैं कि रेडियो एसडी 90.8 एफएम पूरा दिन शहर के लोगों को नई पुराने नग़मो से सराबोर रहा है। साथ ही समाज को सचेत और सहयोग भी। साथी हाथ बढ़ाना के जरिए ठिठुरते दिनों में लोगों को गर्म कपड़े वितरित किए और आज लाँकडाउन में लोगों के घर-घर राशन भिजवाने का काम भी रेडियो एसडी बखूबी किया। रेडियो एसडी हर वर्ष एक भव्य समारोह का आयोजन कर्ता है जिसमें नौजवानों की प्रतिभाओं को एक नए प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जाता है, जिनमें उत्साह वर्धन को नामी बॉलीवुड सर आते जैसे कायनात अरोरा, राखी सावंत, रणविजय सिंघा, संदीप बरार, शिवजोत, अमजद, नदीम को बुलाया जाता है। जब हम पीछे मुड़कर अपने 5 साल के सफर को निहारते हैं तो, कई सुनहरी यादें हाथ मिलाकर पुकारती महसूस हो रही है। लेकिन अभी बहुत लंबा सफर तय करना है... यहां बशीर साहब का यह शेर हमसफर है कि...
जब से चला हूं मेरी मंजिल पर नजर है मेरी आंखों ने मील का पत्थर नहीं देखा।